अमीर खुसरो
कह-मुकरियाँ
अंगों
मेरे लपटा आवे| वाका खेल मोरे मन भावे|
कर गहि,
कुच गहि, गहे मोरि माला|
ऐ सखी
साजन न सखी बाला||०१||
आपने आए
देत जमाना| है सोते को यहाँ जगाना||
रंग और
रस का फाग मचाया, आप भिजे औ मोहि भिजाया|
वाको
कौन न चाहे नेह| ऐ सखी साजन ना सखी मेह||०२||
नीला
कंठ और पहिरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा।
देखत घटा अलापै जोर, ऐ सखी साजन न सखी मोर||०३||
देखत घटा अलापै जोर, ऐ सखी साजन न सखी मोर||०३||
देखत
में है बड उजियारी| है सागर से आती प्यारी|
सिगरी
रैन संग ले आती| ऐ सखी साजन न सखी मोती||०४||
उठा
दोनों टांगन बीच डाला| नाप-तोल में है वह मंहगा||
मोल-टोल
में है वह महंगा| ऐ सखी साजन न सखी लहँगा||०५||
धमक चढै
सुध-बुध बिसरावै| दाबत जांघ बहुत सुख पावैं||
अति
बलवंत दिनन का थोड़ा| ऐ सखी साजन न सखी घोड़ा||०६||
आठ
अंगुल का है वह असली| उसके हड्डी न उसके पसली|
लटाधारी
गुरु का चेला| ऐ सखी साजन न सखी केला||०७||
देखन
मैं वह गाँठ-गठीला| चाखन में वह अधिक रसीला|
मुख
चूमूं तो रस का भाँडा| ऐ सखी साजन न सखी गांडा||०८||
टट्टी
तोड़ के घर में आया| अरतन-बरतन सब सरकाया|
खा गया
पी गया दे गया बुत्ता| ऐ सखी साजन न सखी कुत्ता||०९||
दूर-वुर
करूं तो भागा जाए| छन बाहर छन आँगन आए|
देहलि
छोड़ कहीं नही सुतता| ऐ सखी साजन ना सखी कुत्ता||१०||
सेज पड़ी
मेरे आँखों आया| डाल सेज मोहि मज़ा दिखाया|
किससे
कहूँ मजा मैं अपना| ऐ सखी साजन ना सखी सपना||११||
मेरा
मुँह पोंछे मोको प्यार करे| गरमी लगे तो बयार करे||
ऐसा
चाहत सुन यह हाल| ऐ सखी साजन ना सखी रुमाल||१२||
व्दारे
मोरे खड़ा रहे| धूप-छाँव सब सर पर सहे|
जब देखो
मोरि जाए भूख| ऐ सखी साजन ना सखी रुख||१३||
एक सजन
मोरे मन को भावे| जासे मजलिस बड़ी सुहावे|
सूत
सुनू उठ दौड़ जाग| ऐ सखी साजन ना सखी राग||१४||
सारी
रैन मोरे सँग जागा| भोर भए तब बिछुडन लागा|
वाके
बिछुडन फाटे हिया| ऐ सखी साजन ना सखी दिया||१५||
रैन पड़े
जब घर में आवे| वाका आना मोको भावे|
लै
पर्दा मैं घर में लिया| ऐ सखी साजन न सखी दिया||१६||
अंगों
मेरे लिपटा रहे| रंग-रूप का सब रस पिए|
मैं भर
जनम न वाको छोड़ा| ऐ सखी साजन ना सखी चूड़ा||१७||
मेरे घर
में दीनी सेंध| धुलकत आवे जैसे गेंद|
वाके आए
पड़त है सोर| ऐ सखी साजन ना चोर||१८||
नित
मेरे घर वह आवत है| रात गए फिर वह जावत है|
फँसत
अमावस गोरि के फंदा| ऐ सखी साजन ना सखी चंदा||१९||
व्दारे
मोरे अलख जगावे| भभूत विरह के अंग लगावे|
सिंगी
फूँकत फिरै वियोगी| ऐ सखी साजन ना सखी जोगी||२०||
टप-टप
चूसत तन को रस| वासे नाही मेरा बस||
लट-लट
के मैं हो गई पिंजरा| ऐ सखी साजन ना सखी जरा||२१||
जोर भरी
है जवानी दिखावत| हुमुकि मो पै चढ़ी आवत|
पेट में
पाँव दे दे मारा| ऐ सखी साजन ना सखी जारा||२२||
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लौंडा
भेज उसे बुलवाया| नंगी हो कर में लगवाया|
हमसे
उससे हो गया मेल| ऐ सखी साजन ना सखी तेल||२३||
रात
दिना जाको है गौन| खुले व्दार वह आवे भौन|
वाको हर
एक बतावे कौन| ऐ सखी साजन ना सखी पौन||२४||
हाट-चलत
में पड़ा जो पाया| खोटा-खरा मैं न परखाया|
ना
जानूँ वह हैगा कैसा| ऐ सखी साजन ना सखी पैसा||२५||
रात समय
वह मेरे आवे, भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा||२६||
यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा||२६||
हर रंग
मोहि लागत नीको| वा बिन जग लागत है फीको||
उतरत
चढ़त मरोरत अंग| ऐ सखी साजन ना सखी अंग||२७||
कसके
छाती पकड़े रहे| मुँह से बोले न बात कहे||
ऐसा है
कमिनी का रंगिया| ऐ सखी साजन ना सखी अंगिया||२८||
बन में
रहे वह तिरछी खड़ी| देख सके मेरे पीछे पड़ी||
उन बिना
मेरा कौन हवाल| ऐ सखी साजन ना सखी बाल||२९||
पड़ी थी
मैं अचानक चढ़ आयो, जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार, ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार||३०||
सहम गई नहीं सकी पुकार, ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार||३०||
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