हिंदी साहित्य

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संस्कृति और सौन्दर्य निबंध का संपूर्ण परिचय

 संस्कृति और सौन्दर्य

लेखक : डॉ. नामवर सिंह

निबन्ध सारांश :

     निबंधकार ने अपने निबंध की शुरुवात ही आचार्य हजार प्रसाद व्दिवेदी जी के ‘अशोक के फूल’ इस ललित निबंध से की है | इस निबंध में लेखक ने अनुभव किया है ‘यह एक फूल का विषय न होकर भारतीय संस्कृति का अध्याय है |’ हिंदी में ललित निबंध लिखनेवालों की कमी नहीं है, लेकिन अशोक के फूल का महत्त्व ही कुछ अलग है | कालिदास हो रविन्द्रनाथ टागौर हो ये हमें भारतीय संस्कृति का दर्शन कराते हैं | अशोक के फूल की समीक्षा करते हुए लेखक ने देश की बात की है | लेखक के अनुसार संस्कृति के अंगार पर चोट करने के लिए ही अशोक के फूल का निर्माण हुआ है, प्रकृति वर्णन के लिए नहीं | आगे लेखक ने रामधारी सिंह दिनकर जी के ‘संस्कृति के चार अध्याय’ इस निबन्ध की चर्चा की है | भारतीय की सामाजिक संस्कृति की माला जपने वाले हमें अनेक लोग मिलेंगे, पर दिनकर जैसा संस्कृति पर विशाल ग्रन्थ लिखनेवाला एखाद ही होता है | दिनकर जी की संस्कृति की खोज मिश्र संस्कृति की खोज रही है | मिश्र संस्कृति का प्रमाण देते हुए लेखक लिखते हैं कि, स्वाधीनता प्राप्ति की बात जबसे राष्ट्रीय स्तर पर अनुमोदित और प्रोत्साहित नीति के रूप में सामाजिक संस्कृति का बोलबाला होने लगा, तब आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी जी ने लिखना इस पर बंद कर दिया |

ग्रहण और त्याग का स्वरूप के संबंध में लेखक ने कहाँ है, अज्ञेय जहाँ संग्रहायता की हिमायत करते हैं, वहाँ आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी जी त्याग का चित्रण करते हैं | हमारे समाने एक समस्या है, भीतरी मोह, संपत्ति, कला के नाम पर आसक्ति, धर्मांचार और सत्यनिष्ठा की जड़ता को किस पर प्रकार नष्ट किया जा रहा है |

  मूल संस्कृति हर संस्कृति के मूल में होती है | भारतीय संस्कृति की तथागत मानसिकता सभ्यता के क्षेत्र में लागू होती है | सभ्यता और संस्कृति की दो यूरोपीय अवधारणाओं को पांडे ने भारतीय संस्कृति के लिए अपनाया है | उसका संबंध किस से हैं | आदान-प्रदान सभ्यता के क्षेत्र में ही होता है | शुध्द संस्कृति का सम्बन्ध भी राजनीति के दूसरे पक्ष से जोड़ा जाता है | यह शुध्द संस्कृति अज्ञेय और गोविन्दचंद्र पांडे जी की है | शुध्द होने से ही वह राजनीति से मुक्त नहीं हो जाते | संस्कृति का आग्रह जो है वह अनेक बाधा उपस्थित करता है | संस्कृति में निहित जो संस्कार होते हैं, उसकी ओर अज्ञेय जी ने संकेत किया है | अज्ञेय जी स्वयं इस संस्कार को बाधा मानते है | लखनऊ विश्वविद्यालय के साहित्यकार सम्मेलन में एक व्याख्यान हुआ था, उसमें इस बात पर जोर दिया था कि, विवेक के परिष्करण के लिए किये गए संस्कार ही काल पाकर किसी नए सृजन के लिए बाधा बन जाते हैं | मनुष्य स्वभाव से ही प्राचीन के प्रति श्रध्दावान रहा है | प्राचीन काल से वह श्रध्दा से नजर से देखा है | हो सकता है जिस काल में जो संस्कृति रही उसका महत्व उस काल में ही रहा, उसके बाद वह घिस जाती है |

     कालगत संस्कार की ओर वे संकेत करते हैं | जो पाश्चात्य, देशगत, जातीगत संस्कार है | संस्कार की प्रक्रिया संस्कृति के क्षेत्र में उस शुध्दिकरण की ओर ले जाती है जिसकी बलभूमि गजशीलता पर होती है | ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’ में आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी जी ने ‘आचार्य विशेष’ का उल्लेख किया है, जो एक ही आचार्य की ओर लक्षित होता है | ‘दूसरी परंपरा की खोज’ इसमें एकहरी खोज की है | जयशंकर प्रसाद के ‘काव्य और कला’ इस रहस्यवादात्मक निबन्ध में भारतीयता की दुहाई दी थी | आनंदवादी परंपरा का उल्लेख प्रसाद ने किया | ‘विचार और वितर्क’ में रहस्यवाद का उल्लेख मिलता है | भारतीय शिल्प में कितने उपादान आर्यतर है कितने नहीं | ‘सौन्दर्य प्रेमि जाति’ का आधार बहुत से सारे कवियों ने लिया है | ‘नाट्यवेद’ के बारे में कहाँ जाता है कि, यह ब्रम्हा व्दारा निर्मित है | वेदों में इसका उल्लेख मिलता है | मिथिकीय आर्य से इन्हें चिढ है |

   नारी सौन्दर्य का उल्लेख हजारी प्रसाद व्दिवेदी की उपन्यासों में है | कलात्मक विलासिता की बात करते हैं | सात्विक सौन्दर्य वहां है जहां चोटी का पसीना एडी तक आता है | पसीना बड़ा पावक तत्त्व है | सात्विक सौन्दर्य का वर्णन करते हैं | ‘पुष्पालावी’ फूल चुननेवाली की कथा लेखक बताते हैं | जो दिनभर मेहनत करती है | ‘वह तोडती पत्थर’ की कविता में आई हुई स्त्री वर्णन और सौन्दर्य का वर्ण किया है | मेहनत करनेवाली स्त्री सबसे सुंदर होती है | जनता के मन में सौन्दर्य का सम्मान तभी होगा जब उनका पेट भरेगा | वे जीवन को सुंदर ढंग से जीने के क्रियाशील है | संक्रियतावादी लेखक को प्रिय नहीं है | ‘चरम सुंदर तत्व’ की कल्पना की है | व्दिवेदी जी ने सौदंर्य को लालित्य कहाँ है | उनके अनुसार देवता नाटक नहीं करते, नाटक को तो मनुष्य ने समझा है | बंधन के विरुध्द विद्रोह करने वाले लोग है | सौन्दर्य एक सृजना है |  

निष्कर्ष :

ü व्दिवेदी जी के साहित्य का महत्त्व और योगदान

ü मिश्र संस्कृति

ü ग्रहण और त्याग का स्वरूप

ü मूल संस्कृति

ü शुद्ध संस्कृति

ü कालगत संस्कार

ü देशगत जातिगत संस्कार

ü भारतीय संस्कृति

ü सौन्दर्यानुभूति की परंपरा

ü आनंदवादी परंपरा

ü भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का सहारा

ü सौन्दर्य के प्रेमि

ü नारी सौन्दर्य

ü कलात्मक विलासिता

ü सात्विक सौन्दर्य की उपमा

ü ‘सुंदर’ की परिभाषा

ü लालित्य मीमांसा के तीन सूत्र

प्रमुख पंक्तियाँ :

*    “जीवन का समग्र विकास ही सौन्दर्य है | यह सौन्दर्य वस्तुत: एक सृजन व्यापार है | इस सृजन की क्षमता मनुष्य में अंतर्निहित है | वह इस सौन्दर्य सृजन की क्षमता के कारण ही मनुष्य है | इस सृजन व्यापार का अर्थ है बंधन से विद्रोह | इस प्रकार सौन्दर्य विद्रोह है – मानव मुक्ति का प्रयास है |”   

*    “अशोक के फूल केवल एक फूल की कहानी नहीं, भारतीय संस्कृति का एक अध्याय है और इस अध्याय का अनंगलेख पढ़नेवाले हिंदी में पहले व्यक्ति हैं हजारीप्रसाद व्दिवेदी|”

*    “और सच कहा जाय तो आर्य संस्कृति की शुध्दता के अहंकार पर चोट करने के लिए ही ‘अशोक के फूल’ लिखा गया है, प्रकृति-वर्णन के लिए नहीं| यह निबंध व्दिवेदी जी के शुध्द पुष्प-प्रेम का प्रमाण नहीं, बल्कि संस्कृति दृष्टि का अनूठा दस्तावेज है |”

*    “यदि दिनकर की सामासिक संस्कृति का सम्बन्ध राजनीति के एक पक्ष से है तो स्वयं अज्ञेय और गोविंदचंद्र पांडे की ‘शुध्द संस्कृति’ का सम्बन्ध भी राजनीति के दूसरे पक्ष से जोड़ा जा सकता है |”

*    “जो सम्पति परिश्रम से नहीं अर्जित की जाती और जिसके संरक्षण के लिए मनुष्य का रक्त पसीने में नहीं बदलता, वह केवल कुत्सित रूचि को प्रश्रय देती है | सात्विक सौन्दर्य वहाँ है, जहाँ चोटी का पसीना एड़ी तक आता है और नित्य समस्त विकारों को धोता रहता है |”

*    “कोई जाति क्रान्ति जैसे बड़े उद्देश्य के लिए जान की बाज़ी लगाती है तो इसलिए कि वह सिर्फ जीना नहीं चाहती, बल्कि ‘सुंदर’ ढंग से जीना चाहती है |”

*    “समष्टिगत और व्यष्टिगत दोनों ही स्तरों पर व्दिवेदी जी की सौन्दर्य-दृष्टि मूलत: मानव केंद्रित ही है | इसका अर्थ सिर्फ यही नहीं कि सौन्दर्य का स्रष्टा मनुष्य है, बल्कि यह भी कि सौन्दर्य की सृष्टि करने के कारण ही मनुष्य-मनुष्य है |”

*    “यदि दिनकर की ‘मिश्र संस्कृति’ की एक राजनीति है तो अज्ञेय की ‘संस्कार-धर्मी संग्राहक संस्कृति’ भी किसी और राजनीति के अनुषंग से बच नहीं जाती |”

संस्कृति सौन्दर्य बोध की विकसित होनेवाली मौलिक चेष्टा है – प्रसाद




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Milan Tomic

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