चन्द्रदेव से मेरी बातें : राजेन्द्र बाला घोष (बंग महिला) कहानी का सारांश
प्रकाशन : इस कहानी का प्रकाशन १९०४ में हुआ है|
यह
कहानी न होकर एक निबन्ध है| लक्ष्मीसागर वाष्णेय जी ने अपनी एक किताब ‘निबन्ध
नवनीत’ में कहाँ है कि, ‘यह एक कहानी न होकर, एक निबन्ध है|’ दूसरा यह एक तर्क
दिया जा सकता है कि, चन्द्रदेव से मेरी बातें यह रचना १९०४ में प्रकाशित हुई है और
दुलाईवाली १९०७ में| तो हम देख सकते है कि, हिंदी साहित्य में पहली कहानी का दर्जा
जिसे मिला है वह दुलाईवाली| तो फिर ‘चन्द्रदेव से मेरी बातें’ यह क्यों नहीं?
क्योंकि यह कहानी विधा के चौकट में बैठती नहीं है|
लेखिका इस निबन्ध में चन्द्रदेव से पहले प्रणाम करते हुए इस निबन्ध की
शुरुआत करती है| जहाँ बड़ी ही नम्रता के साथ अपनी इच्छा, आकाक्षाओं को रखती है| वह
चन्द्रदेव को इस भूतल (पृथ्वी) पर आने के लिए आमंत्रित करती है| आमंत्रित करते हुए
कहती है कि, आप तो (चन्द्रदेव से) कितने सालों, युगों से एक ही जगह पर एक सुयोग्य
कार्यदक्ष की भांति निष्ठा से काम कर रहे हैं| आपके विभाग में कोई ट्रांसफर (बदली)
नहीं होता है क्या? या ऐसा कोई आपके यहाँ नियम नहीं है क्या? ऐसा सवाल लेखिका
चन्द्रदेव से कर रही है| आपकी गव्हर्मेंट (सरकार) आपको पेंशन तो देती है की नहीं?
लेखिका कहती है, आपके जैसा कर्तव्यनिष्ठ होकर हमारे यहाँ न्यायधीस या सरकार अगर
ऐसा काम करते तो अब तक उन्हें अनेकों पदोन्नति मील गई होती| और अब तक वे कितने जगह
जाकर घूमकर आ जाते| हमारे यहाँ के सरकार का लाभ लेकर देश में जंगल, पर्वत जाकर
घूमकर आ जाते हैं| ऐसी सुविधा आपके पास है कि, नहीं? वृद्ध अवस्था में आपको पेंशन
काम आ सकती है| यहाँ लेखिका ने हमारे देश की सरकार व्यवस्था और यहाँ के काम
करनेवाले सरकारी कर्मचारियों पर व्यंग किया है|
यह
सब सवाल करते हुए लेखिका अचानक चन्द्रदेव से क्षमा माँगते हुए कहती है, मुझे क्षमा
करे! आपको तो इन सभी चीजों की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि आप तो अमर है| आपको अमरता
का वरदान मिला हुआ है| आपको मृत्यु का, स्वर्ग-नरक का तो भय ही नहीं है| जैसे
देवता लोग अपने जाती के कारण पक्षपात करते है,वैसे ही भारत में भी लोग पक्षपात
करते है| अंग्रेज सरकार भी उसी तरह पक्षपात कर रही है| इस बात में आपको कोई
आश्चर्य नहीं लगेगा| दूसरी बात कहना हो तो, आपको अगर अंग्रेज जाति की सेवा करना
आपको स्वीकार हो तो, एक अप्लिकेशन (निवेदन) कर दीजिए| आधुनिक भारत के प्रभु है,
डॉ. लार्ड कर्जन को भेज दीजिए| जिससे आपको नर्मता पूर्वक आव्हान करना है| फिर आपको
भारत की जो कुछ नौकरियां देने के में समर्थन पा सकेंगे| लेखिका कहती है कि, हमें
विश्वास है, यहाँ के स्थायी विधाता डॉ. कर्जन बन जायेगें| जो अत्यंत सरल स्वभाव के
महात्मा है| यहाँ पर लेखिका ने व्यंग्य किया है| और उनका एक ही नारा होता है,
‘कमीशन और मिशन’| यह दोनों भी कार्य उनको अत्यंत प्रिय है| जैसे किसकी भरती करना
और किसका, कितना कमीशन लेना है| लेखिका कहती है, आधुनिक काल के चलते यहाँ निति और
रीती में पूरी तरह परिवर्तन आ गया है| इस बदलाव में आकाश पाताल का अंतर भी है|
यहाँ आने के बाद आपको पूरा भारत भ्रमण करना है| आपको छुट्टी मिलती नहीं होगी? और
यहाँ भारत के सन्तान युवा वर्ग के लोग छुट्टी के लिए तो लालाइत रहते है| अर्थात,
देश में युवा वर्ग की आलसी मनोवृत्ति पर लेखिका ने व्यंग किया है| यहाँ के युवा को किसी ओर से कोई लेना देना नहीं है,
वे अपने आप डूबे हुए हैं| एक लडकपन का चश्मा धारण किया हुआ| यहाँ दीन-हिन अनपढ़
जनता से ये काफी दूर रहते हैं| जानकर समझकर युवा वर्ग इससे दूर रहता है| आपको भारत
घुमने आना है आपको अवकाश मिलता ही नहीं होगा| क्योंकि आप हमेशा काम पर दिखाई देते
है| अर्थात, अमावस्या के दिन आपको छुट्टी मिलती होंगी, तो उस दिन आप हमारे यहाँ पर
हॉलिडे मनाने के लिए आ जाइए| किन्तु भारत भ्रमण तो एक दिन में नहीं होगा| तो आप
सिर्फ कलकत्ता में आइए और कलकत्ता के कारखानों, कारागीरों, वहां की शिक्षा-दीक्षा,
व्यवसाय, लोग-परलोक सब देख लीजिए| जिसतरह देवताओं का बोज उनके वाहन उठाते है, किसी
का बैल, किसका हंस, मोर आदि होते है| किन्तु यहाँ ऐसा नहीं है, यहाँ तो सिर्फ
मनुष्य का बोज चप्पल उठाती है| सबका कार्य वह अकेली करती है| किसी भी जाति क्यों न
हो, चाहे वह ब्राम्हण, क्षत्रिय, शुद्र, वैश्य हो सबके पैरों में चप्पल है| चप्पल
की कोई जाति नहीं होती है| लेखिका चन्द्रदेव से यहाँ के बिजली का अध्ययन भी करने
के लिए कहती है| यहाँ के उच्चशिक्षा विभूषित युवा सिर्फ देखते रहते है, बाकि वे
कोई कार्य नहीं करते है| युवा वर्ग को देश के लिए कार्य करने को लेखिका कह रही है|
किसी की भी हिम्मत नहीं है, वे उस बिजली को स्पर्श कर सके| उसका सुधार कर सके| जिस
वजह से ग़रीब को बिजली मिल सके| वह सिर्फ दासी बनकर रह गई है|
लेखिका आगे कलकत्ता के ईडन गार्डन की भी बात करती है| जो बहुत ही शुशोभित
है| विश्वविद्यालय के श्रेष्ठ पंडितों से भी आप बात कर सकते है| वहाँ पर विद्यावानी,
सरस्वती है| यह आप वहां देख सकते हो| वहाँ की सुन्दरता को देख आप मन्त्र-मुग्ध हो
जाओंगे| कुबेरनाथ भी यहाँ का साम्राज्य देखने के बाद मन्त्र-मुग्ध हो जायेगे|
लेखिका चन्द्रदेव से यहाँ आकर इसका आवलोकन करने को कहती है| लेखिका यहाँ आने के
लिए सविनय आग्रह करती है| यहाँ आने के बाद चन्द्रदेव को क्या क्या लाभ मिलेंगे
इसके बारें में भी वह कहती है| यहाँ की वायु, कलंक-कालिमा, शंशाक-शसधर आदि यहाँ
है| और शायद यहाँ के जो पंडित वर्ग है आपकी चेष्टा भी कर सकते हैं| यहाँ बंबई में
जो स्वर्गीय महारानी विक्टोरिया रानी की जो प्रतिमूर्ति है| जिसका काला दाग छुडाने
के प्रो. महाशय गजधर ने कष्ट लिया था| उसको भी आप देख संकेंगे ऐसा लेखिका
चन्द्रदेव से कह रही है| यहाँ जो भूमंडल की छाया इधर किसतरह सूर्य नारायण के यहाँ
पड़ती है, उसको भी आप देख सकेंगे| वह छाया पड़ने से किस तरह वह ग्रहण लगता है यह भी
आप देख सकेंगे| यहाँ के लोगों की नासमझ, भूल या थोतापन कि, ग्रहण लगता है| इस
थोतेपन को आपको यहाँ आकर मिटाना है| ग्रहण कैसे होता है या नहीं है? स्वामी सूर्य
और उनके पुरे साम्राज्य को देख सकेंगे, कि किसतरह यहाँ उनके मन्दिर बनाये गए है|
यहाँ की बहुत सारी बातों को आप ज्ञात करके जायेंगे| यहाँ के राजा-महाराजाओं को भी
देख सकेंगे| जो सिर्फ पुतलियों की भाँति है, किसी कोभी प्रजा वर्ग से कोई
लेना-देना नहीं है| लेखिका ने यहाँ राजा-महाराजों पर व्यंग्य किया है| प्रजा की
रक्षा करनेवाला वर्ग इनके समाने नाचता है| अर्थात, प्रजा दुखी है या सुखी है इससे
इनको कोई मतलब नहीं है| लेखिका यहाँ इस निबंध के माध्यम से चन्द्रदेव से यहाँ आकर
भूलत की स्थिति को देखने और समझने के आमंत्रित करती है| अलग-अलग क्षेत्रों को
देखने की वह बात करती है| जिसमें, चिकित्सा, कानून, शिक्षा, डॉक्टर आदि|
निष्कर्ष :
ü जाति गत पक्षपात का पर व्यंग्य
ü परिवर्तन की बात
ü सरकार एवं कर्मचारी वर्ग पर व्यंग्य
ü कलकत्ता की खासियत
ü एकता का सूत्र –चप्पल
अलग-अलग क्षेत्रों पर करारा व्यंग्य- बिजली,
कानून, शिक्षा|
युवा
वर्ग की आलसी प्रवृति पर प्रहार
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