सतपुड़ा
के जंगल:
प्रकाशन एवं संकलन: कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने अपनी ‘गीत फरोश’(१९५६) इस कविता संग्रह में संकलित है और जिसे दुसरे तारसप्तक में भी स्थान दिया हुआ है| इस कविता में कवि ने प्रकृति का वर्णन किया है|
कवि ने इन पंक्तियों में सतपुड़ा के घने जगलों का वर्णन
किया है| सतपुड़ा के जंगल बहुत ही घने-भरे है| इस कारण मानो वे नींद में दुबे हुए
से लगते है| अर्थात, घने होने के कारण वे झुके हुए है, जिसकारण देखनेवाले को वो सो
गए है ऐसा आभास होने लगता है| और इसी नींद में वे ऊँघते हुए उदासीन से प्रतीत होने
लगते है| जंगल के वृक्ष बहुत ही नीचे से ऊपर दिखाई देते है| यानी वहाँ छोटे-बड़े हर
प्रकार के वृक्ष हैं| जो अपने आँखे बंद करके उस जंगल में चुप-चाप खड़े हैं| उस जंगल
में घास भी चुप है और कास (जो शोभाजन वृक्ष) वो भी चुप है, पलाश भी चुप है| वहाँ
के सभी वृक्ष भी चुप, शांत है| कवि कहते है, अगर आप इस जंगल में घुसना चाहते तो
घुस जाओ इनमें| इन उदास जंगलों में हवा भी प्रवेश कर नहीं पाती है| इन ऊँघते उदास
सतपुड़ा के घने जंगल का वर्णन किया है|
“सड़े पत्ते, गले
पत्ते,......................ऊँघते अनमने जंगल|”
कवि ने उक्त पंक्तियों में सड़े-गले पत्तों का वर्णन किया है| इस जंगल में
हर प्रकार के पत्तें हैं, जिसमें सड़े-गले, हरे-जले पत्तें है, कीचड़ में सने हुए
पत्तें भी हैं| इन पत्तों के उस जंगल के वन्य का रास्ता (पथ) ढका हुआ है| जिसवजह
इस जंगल में जाने के बाद मार्ग दिखाई नहीं देता| घुमने आये हुए अपना मार्ग भटक
सकता है| अगर इन भटकतें हुए रास्तों पर चल सको तो ही उस घने जंगल में प्रवेश करना
है| अर्थात, कवि ने यहाँ पाठको को चुनौती दी है| अगर है इस घने और घृणा उत्त्पन्न
करनेवाले जंगल के दल-दल में पार करने के लिए तैयार है तो इन ऊँघते उदास जंगल को
देखने जाओ|
“अटपटी-उलझी
लताएँ,.......................ऊँघते अनमने जंगल|”
कवि ने आगे कहाँ है, इस सतपुड़ा के जंगल सभी वृक्षों की लताएँ सभी अजब सी
फैली हुई हैं| उसमें अटपटी-उलझी हुई हैं| ये लताएँ डालियों को खींच-खींचकर उस
डालियों को पकड़कर उसका रस चूस लेती हैं| हम उसके नीचे से जाते है तो अचानक पैर पकड़
लेती है| अचानक पकड़ने के कारण प्राणों में कंपन पैदा कर देती है| उन लताओं का
वर्णन करते हुए कवि कहते है, वे जो लताएँ है साँप जैसी काली हैं| वे लताएँ एक तरह
से बला है अर्थात, वे अंत्यंत भयंकर और कष्टदायक हैं| लताओं से बने इस जंगल में और
ऊँघते उदासीन जंगल में सब वृक्ष शांत और मौन धारण किये हुए हैं| जब आप इस घने जंगल
में प्रवेश करते हैं तो, मकड़ियों के जाल मुंह पर आ जाते हैं और हमारे सर के बाल भी
मुंह पर आ जाते हैं| मच्छरों के दंश के कारण हमारे मुंह पर काले-लाल दाग मुंह पर
पड़ जाते हैं| कवि ने यहाँ पर सतपुड़ा के जंगल में प्रवेश करना कितना कठिन होता है|
इसका वर्णन करते हुए कहाँ है, उस जंगल में चलते समय अनेक संकटों एवं आंधियों का
सामना करना पड़ सकता है| अगर इस सभी कठिनाई का सामना करने की या ये सब खतरें सहन
करने की आपमें में हिम्मत है| तो इस कष्टदायक, घने, उदासीन और नींद में डूबे जंगल
को देखने आप जा सकते हैं|
“अजगरों से भरे
जंगल................................ऊँघते अनमने जंगल|”
कवि
आगे उस जंगल का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, वह जंगल पूरा अजगरों और साँपों से से
भरा हुआ हैं| वे जंगल अपनी में गति सबसे आगे रहते हैं| उस जगल में सात-सात
पहाड़वाले भी है| बड़े-छोटे वृक्षों से भरे हुए हैं| उस जंगल में दहाड़ मारनेवाले और
गरजनेवाले शेर, बाघ भी हैं| जिनकी आवाज सुनकर व्यक्ति के मन में डर की लहर दौड़ती
है या कम्पन पैदा करता है| उस शांत उदास जंगल में आप देख सकते हैं| इस वनों के
बहुत ही भीतर गौंड जाति के लोगों एक बसेरा हैं| उनके पास चार मुर्गे, चार तीतर
पक्षीयों को पालकर निश्चित बैठे हुए हैं| उस निर्जन वन में वे लोग रहते हैं| उनके
रहने के घर का वर्णन करते हुए कहाँ है, उनके झोपड़ियों पर घास-फूंस डाले हुए है|
गोंड लोग खा-पीकर तगड़े और दिखने में काले होते हैं| जब भी होली का समय आता है, उस
जंगल के सरसराती घास से गाने-गीत की आवाज आती है| जंगल के महुए के वृक्ष ले लपकाती
हुई मदभरी सुगंध आती है| होली के अवसर ढोल गूंजते इन लोगों के और गीत के बोल भी
सुनाई पड़ते है| इस सतपुड़ा घने जंगल में नींद में डूबे उदास जंगल में यह सब दिखाई
देता हैं|
“जागते अंगड़ाइयों
में,.............................ऊँघते अनमने जंगल|”
कवि आगे सतपुड़ा के जंगल का वर्णन करते हुए कहते है, यह जंगल हमेशा
अँगड़ाइयां ले-लेकर जागते रहते हैं| यह जंगल खड्डों में खाइयों से भरे हुए हैं| इन
जंगलों की सभी वृक्ष घास, कास, शाल, पलाश, लता, वात(वायु), डाल, पात(पत्तें) सब
पागल हो गये हैं| इन वनों के बहुत ही अन्दर मुर्गे और तीतर सब मत्त हो गये हैं| यह
घना जंगल क्षितिज (आकाश) तक फैला हुआ ऐसा लगता है| मृत्यु में मैला हुआ सा यह जंगल
क्षुब्ध (क्रोधित, भयभीत करनेवाला है| काली लहर जिसतरह फैल जाती है, उसी तरह मथित
जहर वाले साँप की तरह फैला हुआ हैं| मेरु वाला, शेष वाला, शंभू और सुरेश वाला जो
साँप जो अपने शीश पर इस धरती पर उठाएं हुए है| उस एक सागर को जानते हो? उसे आप
कैसे मानते हो? ऐसा सवाल कवि ने किया है| उस जंगल में ठीक वैसा ही एक सागर है| शांत
घने जंगल में ये दिखाई देता है|
“धँसो इनमें डर नहीं है,...........................लताओं
के बने जंगल|”
कवि ने आगे पाठकों कहाँ है, यह सतपुड़ा के घने जंगल का इतना वर्णन करने के
बाद आप डर से भयभीत होकर ये जंगल देखने नहीं जाने के बारे में सोचेंगे| किन्तु
आपको डरना नहीं है| इन जंगलों में प्रवेश कर लो| यह मौत का घर नहीं है| भेलेही
इनमें कठिनाईयाँ, कष्ट है| उस जंगल में उतरकर अनेकों बहते है और जब बाहर आते हैं
तो अनेकों अपने अनुभव की कथा भी कहतें हैं| इन जंगल में नदी, नाले निर्झर इन वनों
ने अपने गोद में पाले हैं| इसमें लाखों पंछी, सौ से भी अधिक हिरन के दल इसमें वास्तव
है| चांदने के कितने किरनों के दल, झूमते वन फूल, फलियाँ इस जंगल में दिखाई देगी|
उस जंगल वन में अनेकों अज्ञात कलियाँ खिलते हुए दिखाई देगी| हरी-भरी घास(दूर्वा)
वह रक्त युक्त पूर्ण रूप से रसयुक्त और पावन इस सतपुड़ा के घने जंगल में लताओं से
भरे हुए है|
निष्कर्ष :
सतपुड़ा के जंगल का सूक्ष्म वर्णन|
जंगलों का कष्टदायक सफर का वर्णन
गोंड जाति के लोगों का वर्णन
कवि ने पाठकों को चुनौती दी हैं|
जंगल कष्टदायक सफर पूरा करने का अनुभव
जंगल के सौन्दर्य का वर्णन
प्रकृति चित्रण का वर्णन
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