हिंदी साहित्य

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maati ki murten | rajiyaa raamvruksh benipuri | रामवृक्ष बेनीपुरी का संस्मरण रेखाचित्र | रजिया रेखाचित्र | माटी की मूरतें का परिचय | रजिया का परिचय |

माटी की मूरतें

लेखक : रामवृक्ष बेनीपुरी

विधा : संस्मरण

रचना काल : 1946

रचना का सारांश :

      यह किताब बारह (12) भागों में विभाजित है | लेखक ने यह किताब 1946 में दिवाली के दिनों में लिखी थी |

१.     रजिया

२.     बलदेव सिंह

३.     सरजू भैया

४.     मंगर

५.     रूपा की आजी

६.     देव

७.     बालगोबिन भगत

८.     भौजी

९.     परमेसर

१०.  बैजू मामा

११.  सुभान खां

१२.  बुधिया

१. रज़िया :

पात्र :

१.    रज़िया

२.    मैं (लेखक) –नेता

३.    हसन – रजिया का पति

४.    रजिया की माँ

५.    लेखक की मौसी, भौजी

विषय :

ü अव्यक्त प्रेम संवेदना का चित्रण

ü मुसलमान नारी की जीवनी

ü एक चुड़िहारिन की कथा

ü रक्तहीन संबंधों का चित्रण

ü मानवीय भावनाएँ 

   सारांश : यह कथा ‘रजिया’ नामक लड़की है | जो बचपन में अपनी माँ के साथ चूड़ियां पहनाने के लिए लेखक के घर आती है | जब पहली बार लेखक ने ‘रजिया’ को देखा था, उसे घूरते ही रहे थे | लेखक के गाँव में ‘रज़िया’ की माँ के हाँथों से ही गाँव की सभी औरतें चूड़ियां पहनती थी | जब छोटे से लेखक रजिया के पीछे-पीछे जाने लगे, तो रजिया की माँ ने हँसी में कहाँ था, ‘क्यों रे रजिया, यह दूलहां पसंद है तुम्हें?’ लेखक यह बात सुनकर वहाँ से भाग जाते है | एक मुसलमानिन से ब्याह कैसे हो सकता है? यह उन्हें लगता है | कुछ दूर जाने के बाद जब लेखक ने मुड़कर देखा, तब रज़िया अपनी माँ के पैरों में लिपटी हुई थी | रज़िया चूड़ी हारिन उसी गाँव में रहनेवाली थी | जिस गाँव में लेखक रहते थे | शादी के बाद भी वहीं रही | लेखक से उसकी भेट हो जाया करती थी | लेखक पढ़ने के लिए शहर गए, लेकिन रजिया की पढाई नहीं हुई | वह अपनी माँ के साथ चुडिया पहनाने का काम सीख गयी | नयी नवेली दूल्हन ‘रजिया’ के ही हाथों से चूड़ियां पहनना पसंद करती | लेखक और उसकी भेट जब कभी होती है, तब उसमें अजीब सा परिवर्तन दिखाई देता |

     लेखक से जवान उम्र की पहली भेट में रज़िया दौड़कर उनके पास आती है और अजीब-अजीब प्रश्न पूछने लगती थी | जैसे – शहर के बारे में, शहरी स्त्रियों की चूड़ियों के बारे में आदि | कुछ दिनों के बाद जब भेट हुई, तब वह लेखक के निकट आने से पहले इधर-उधर देखती है | शायद उसे लोगों की नजरों का डर हो | चौकन्नी-सी होकर बातें करती, जब लेखक की भौजी चिढ़ाती तो उसके गाल लाल हो जाते थे | जब रज़िया और लेखक मिलते तो बहुत से लोग उनको घूरते रहते | लेखक कहते है, रज़िया जवान हो गयी, तब से उसका अपना अलग-सा अस्तित्व था | वह पहले माँ की छाया मात्र थी | अब वह चूड़ियां पहनाती है | कितने ही लोग तमाशा देखने हजर होते | पत्नियों के पतिदेव भी चुपके से रजिया की चूड़ियां पहनानी की कला निहारते | रज़िया को भी इस काम में आनंद आता था | रजिया भी हंसी-मजाक में अच्छी-अच्छी चूड़ियां दिखाकर हंसती | रजिया अपने पेशे में निपुण हो गयी थी | चुड़िहारिन के पेशे में रंग-बिरंगी चूड़ियों के अलावा उसे पहनाने का हुनर और रस भी चाहिए होता है | लेखक का शहर में रहना बढ़ता गया और रजिया की मुलाक़ात कम होती गयी | एक दिन अचानक वह गाँव में आयी | उसके साथ नौजवान पति भी था | लेखक की बचपन की भावना एक शिकन के साथ लुप्त हो गयी | जब लेखक की भी शादी हुई | तब लेखक की पत्नी को भी रज़िया चूड़ियां पहनाने के लिए आने लगी | उसके साथ हँसी-मजाक करती रही | रजिया ने अपनी प्रेमकथा भी सुनायी थी | उसके पति का नाम ‘हसन’ था |

    दोनों का जीवन आगे बढ़ता गया | एक दिन पटना शहर में लेखक जहाँ पर एक समाचार पत्र में काम करते थे | एक पानवाले के दूकान पर वे अपने कुछ प्रशंसक नवयुवकों के साथ पान खा रहे थे | एक बच्चा आकर कहता है, ‘बाबू, वह औरत आपको बूला रहा है |’ चौक पर कौनसी ‘औरत’ होगी? यह सोचकर लेखक को थोड़ा गुस्सा आया था | पर जब पान खाकर सब लोग गए लेखक उस रास्ते पर मुड़े जहाँ का इशारा उस बच्चे ने किया था | एक पीपल के पेड़ के पास एक स्त्री लेखक की तरफ बढ़ रही थी | वह रजिया थी | जिसने आते ही ‘सलाम मालिक’ कहाँ | लेखक ने उसे पटना शहर में आने का कारण पूछा | उसने कहाँ, “जमाना बदल गया, दुल्हनों के नये-नये मिजाज भी बदल गये हैं | इसलिए नयी-नयी चीजें खरीदने आयी है | आप यही रहते हैं, यह सुना था | इसलिए आपसे मिलने आ गयी |” लेखक ने लिखा है, रजिया वहीँ नहीं थी, पर उसकी हँसी वहीँ थी | लेखक से इधर-उधर की बातें की | अब गाँव का वातावरण बदल गया है | हिन्दू स्त्रियाँ मुसलमान चुड़िहारिन से चूड़ियां पहन के नहीं लेती पर लेखक की पत्नी अभी भी रजिया के ही हाथों से चूड़ियां पहनकर लेती है |

    दूसरे दिन वह उसी स्थल पर चूड़ियां लेकर आ गयी और पत्नी को देने के लिए कहाँ | जब लेखक ने कहाँ, ‘तुम तो जाती हो, तुम ही दे दो |’ तो रजिया ने कहाँ, ‘पति के हाथों से चूड़ियां पहनना पत्नी को अच्छा लगता है | इस भेट के बाद बहुत साल बीत गये लेखक अचानक रजिया के गाँव चुनाव के चक्कर में गए थे | ‘रजिया चुड़िहारिन कहाँ रहती है ?’ ऐसा किसी से पूछ भी नहीं सकते थे | लेखक वहाँ नेता बनकर गए थे | सो जय-जयकार हो रही थी | लेखक का अंतर्मन कुछ कह रहा था और जीम कुछ और बोल रही थी | अचानक ‘रजिया’ जैसी ही बच्ची लेखक के पास आती है | एक बार तो लेखक को बचपन की ‘रजिया’ लगी | बाद में पता चला रजिया की वह पोती है | रजिया अब दादी बन चुकी थी | वह बच्ची लेखक का हाथ खिंचती हुई घर की तरफ ले जा रही थी | रजिया को तीन बेटे थे | बड़ा बेटा कलकत्ता में कमाता है, मंझला पुश्तैनी पेशे में है | छोटा शहर में पढ़ रहा था | यह बड़े बेटे की बेटी थी | दादा पर सभी पोते गए थे और दादी का चेहरा पोतियों ने लिया था |

     जब घर पहुँचकर बच्ची ने आवाज दी और दादी मालिक दादा आ गए है | रजिया बाहर नहीं आ सकी | क्योंकि वह बीमार थी और मैले-कुचले कपड़े पहनकर अपने मालिक के सामने कैसे आये ? विमान से आनेवाले नेता रजिया के घर तक आयेंगे यह विश्वास नहीं था | जब आ रहे है, ऐसा सूना तो बहुओं से कपड़े बदलवाकर वह मिलती है | दोनों पतोहुएं का सहारा देकर रजिया को आँगन में लेकर आती है | उसका शरीर निढाल हो गया है | दुबली-पतली, सुखी-सुखी फिर भी मिलते ही, ‘मालिक सलाम’ कहना नहीं भूलती और उसके चेहरे पर मुस्कान छा जाती है | जिस कारण चेहरे पर पड़ी झुर्रियाँ कहीं गायब हो जाती है | 

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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