हिंदी साहित्य

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परीक्षागुरु उपन्यास की कथावस्तु | परिक्षागुरु का सारांश|

 

परीक्षागुरु

लेखक : लाला श्रीनिवास दास

प्रकाशन : १८८२ में इस रचना का प्रकाशन हुआ है|

पात्र :

1.     लाला मदनमोहन – एक व्यापारी 

2.     मुंशी चुन्नीलाल – लाला मदनमोहन का मुंशी

3.     लाला ब्रज किशोर

4.     मिस्टर ब्राइट

5.     मिस्टर रसल

6.     हरगोविन्द – पंसारी का लड़का

7.     हकीम अहमद हुसेन

8.     मास्टर शिन्भुद्याल सिंह

9.     पंडित पुरुषोत्तमदास    

10.                         लाला जवाहरलाल

11.                         हरकिशोर – एक साहसी व्यक्ति

12.                         लाला हरदयाल – मदनमोहन का दोस्त, किन्तु स्वार्थी व्यक्ति  

13.                         बाबू बैजनाथ

14.                         निहालचंद मोदी

15.                         मदनमोहन की स्त्री

16.                         लड़का १, २

विषय :

ü व्यापारियों के जीवन की कथा

ü व्यवहार और व्यापार भेद बताया है

ü स्वदेशी और देशी वस्तुओं की तुलना

ü धार्मिक प्रवृत्ति की कथा

ü एक व्यापारी के जीवन का चित्रण

सारांश/कथावस्तु

     यह हिंदी साहित्य का प्रथम उपन्यास है| उपन्यास के आरंभ में लेखक ने इस रचना की भाषा के बारें में चर्चा की है| लेखक के हर व्याकरणिक सभी नियमों क्यों आये है यह बताया है| इस उपन्यास में दिल्ली के एक कल्पित रईस की कथा वताई है| इसमें दिल्ली के सहज और साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है|

प्रकरण : १

    सौदागर की दूकान का वर्णन है| उपन्यास में दूकान पर कुछ लोग चर्चा कर रहे है| उसमें ब्रजकिशोर, चुन्नीलाल, शिम्भूदयाल, मदनमोहन आदि है| दूकानदारी के चालाकी का वर्णन इसमें किया गया है| दूकान हर वस्तु की कला, कारिगरी की चर्चा और प्रशंसा होती है| इन सबकी चर्चा से स्पष्ट होता है कि, अच्छी चीजें खरीदने के लिए पैसे चाहिए| अमीर और गरीबों में अंतर इसी चीजों को लेकर होता है| काच जो फ्रांस में बने हुए अच्छे होते है| अंग्रेजो की नकल करना जरुरी है क्या? इसतरह का प्रश्न लाला ब्रजकिशोर कहते है| सामान से इज्जत नहीं मिल सकती| मुंशी चुन्नीलाल कुछ चीजें लेना चाहता है| जिसका हिसाब करके रखने के लिए कहते है और अपनी घड़ी पर नौ बजे हुए देखकर वहां से आगे निकल जाते है| सब लोग अपने-अपने घर पर चले जाते है|

प्रकरण : २

     मुंशी चुन्नीलाल के घड़ी में नौ बजे है| उन्होंने अपनी घड़ी आधे घंटे आगे की है| क्योंकि ब्रजकिशोर जी से पीछा छुडाने के लिए| लाला ब्रजकिशोर लाल सीधी-सीधी बातों को बहुत ही पेचिदा बना लेते है| उनकी बातों से हर को बचना चाहता है| मिस्टर रसल मदनमोहन के घर आते है| मिस्टर रसल एक नील के सौदागर है| परन्तु उनके पास पैसे नहीं है| नील के साथ-साथ रुई आदि का भी वगैरे का भी व्यापार भी कर लेते है| एक दो दोस्त की शिफारस से वे पिछले डेढ़ दो बरस से मदनमोहन के यहाँ आते है| मिस्टर रसल इस बार मदनमोहन से मदत माँगने आया है| मदनमोहन का मंशी उन्हें बिठाता है| लाला साहब आपकी मदत जरुर करेंगे यह बात उन्हें समझाते है| लाला मदनमोहन से मिलने के बाद रामप्रसाद बनारसीदास की डिक्री का पैसा चुकाने के कहते है| जो कुछ कर्ज हो वह मिस्टर रसल चुकाने के लिए तैयार है| लाला साहब पैसे देने के लिए तैयार है लेकिन मिस्टर रसल ये पैसे भविष्य में कैसे चुकायेंगे ये प्रश्न उन्हें पूछा जाता है| तब मिस्त्र रसल यहाँ एक शीशे बर्तन का कारखाना डालना की बात करता है| क्योंकि शीशे की जितनी भी चीजें यहाँ दिखती है जो विदेश से आती है| अगर यहाँ वह बनने लगे तो उसमें मुनाफा होगा ही| फिर भी अगर लाला साहब को मुझपर यानी मिस्टर रसल पर विश्वास नहीं तो वे नील का कारखाना अपने पास रख सकते है| अर्थात उसके आधार पर पैसे दे सकते है| मुंशी फिर एक सवाल खड़ा करता है कि रामप्रसाद बनारसीदास के अलाव किसी और का पैसा तो आपको देना नहीं है न? मिस्टर रसल बताता है कि लाला साहब के अलावा और किसी के कर्ज में मैं नहीं हूँ| इस पर लाला मदनमोहन और मुंशी चुन्नीलाल आपस में कुछ बातें करते है, जिससे यह स्पष्ट होता है, फिलहाल तो उनके पास पैसे नकद देने के लिए नहीं है| मिस्टर रसल गिडगिडा कर कहता है| आप मेरी इज्जत बच्चा ले मैं आपका यह एहसान जिन्दगी भर नहीं भूलूंगा| लाला साहब शर्माते हुए कहते है, अभी तो मेरे पास पैसे कम है सब कामों में लग गए हैं| फिर भी कल मैं दस हजार जमा करके भेज दूंगा| यह सुनकर मिस्टर रसल खुश होकर हात मिलाता है| उनके भरोसे निश्चिन्त रहेगा यह कहकर वहां से चला जाता है| लाला मदनमोहन भी भोजन करने चले जाते है|

प्रकरण – ३

    लाला मदनमोहन भोजन करके आते है| अपनी खुर्शी पर बैठकर पान खाने लगते है| वहां उपस्थित सभी लोग अपनी अपनी बातें कर रहे है| हरगोविन्द लाला को एक टोपी दिखाते हुए कहता है, यह लखनऊ टोपी अभी-अभी बजाज के यहाँ आई है| आपको चाहिए तो दो चार लाकर दे सकता हूँ| लाला उन्हें किमंत पूछते है| वह पच्चीस कहता है| फिर भी मैं मोलभाव करके कुछ कम कर दूंगा| लाल उसे कहते है बीस रूपये में दिए तो चार लेकर आना| हरगोविन्द मोलभाव में कोई कसर नहीं अपनी ओर से वे पूरी कोशिश करेंगे| यह कहकर वहां से चले जाते है| अहमद हुसेन हकिम अपने एक शीशी लाला को दिखाता है और कहता है, अजमेर से माल आ रहा था| रास्तें में चोरी हो गया| सिर्फ एक शीशी यह बची हुई है| पंडित पुरुषोत्तमदास कहते है| जो लाला साहब को चाहए वह हमें दिखाएँ हम वह इच्छा पूरी कर देंगे| हकिम कहता है आपकी नजर से जो चाहे वह नहीं मंगवाया जा सकता| कडवी बातें तुम खाओ, हमें मुंह अपना कडवा करनी की आवश्यकता नहीं है पंडित कहते है| लाला साहब के कारण हमेशा लड्डू मिलता है हम उसपर एश करते है| मास्टर शिंभुदयाल कहते लड्डू की बातें ही करते हैं यह और कुछ भी सीखते है? पंडित नाराज होकर हुसेन से कहता है, तुम मदरसे में दो एक किताब पढकर अपने आपको विद्वान मंत समझना| हमारी विद्या तुम्हारी तरह नहीं है| अगर तुम्हें परीक्षा लेनी हो तो एक कागज पर अपने मन की बात लिख दो और अपने पास रख दो हम से तुरंत पहचान जायेंगे| पंडित अपने अंगोछे से कागज पेन निकालकर देता है| मास्टर शिंभुदयाल उस कागज पर कुछ लिखकर अपने पास रखते है| पंडित अपना पुष्टिपत्र लेकर थोड़ी देर कुंडली खेंचते है और बोलते है, तुम्हें हमारी हर बात पर हंसी आती है, कागज पर करेला लिखा है| ऐसा हसना अच्छा नहीं है|

     लाला मदनमोहन के करने पर मास्टर शिन्भुद्याल ने कागज खोलकर दिखाया तो ‘करेला’ ही लिखा था| पंडित अपने पूछों पर ताव दे रहे थे| शिभुदयाल की पंडित की बनती नहीं थी| असल बात यह थी कि, जो कागज दिया था उसके निचे काजल लगाकर पुष्टिपत्र रखा था| जब कोई उपर के कागज पर कुछ लिखा था तो काजल के कारण वह निचे दुसरे कागज पर आते थे| इस कारण पंडित से कुंडली के बाहने इधर उधर घुमरे हुए बता देते थे|

        लाल मदनमोहन की तारफ सभी लोग वहां इस लिए करते थे| वे हर किसी की मदत करते थे| लाल जवाहरलाल कुछ उनसे नाराज है| क्योंकि लाल मदनमोहन उन्हें इतने दिनों तक काम करने बाद उनकी तबियत खुश करने का मौका नहीं दिया|

    हरकिसन आकर लाला मदनमोहन को एक समाचार देता है कि, लाला हर दयाल आपसे शामको बाग़ में मिलने के लिए आने वाले है| लाल मदनमोहन खुश हो जाते है| और पूछते है, जब तुम वहां गए थे तब वे क्या कर रहे थे? तब हरकिसन कहता है, भोजन करके पलंग पर लेटे ही थे| आपका नाम सुनकर तुरंत उठ खड़े हुए और आपकी खैरियत पूछने लगे| लाल मदनमोहन और लाल हरदयाल एक दुसरे से अच्छी तरह समझते थे| तब तक हरगोविन्द टोपियाँ लेकर आता है वह भी अठारह रूपये में एक| लाल मदन मोहन ने खुश होकर कहता है, तुमने तो उसे आँखों में धूल डाल दी| बाईस में दे रहा था| यह कैसे किया तुमने| हरगोविन्द ने टोपीवाले को आगे का फायदा दिखाकर लालच भर दिया था|

   हरकिशोर आकर कहता है, मैं यह टोपियाँ तेरह रूपये में लाकर दूंगा| उस कल बाजार में बारह रूपये में बेचते देखि है| फिर हरगोविन्द और हरकिशोर में थोड़ी बहस होती है| हरकिशोर यह आदमी दुसरो की नाक काटने के लिए अपनी नुकसान भी करवा के लेता है| लाल मदनमोहन अपना मुनाफा देखते है| दूसरों को गुलाम बनाना इनकी आदत है| मुंशी चुन्नीलाल उनकी तारीफ करते नहीं थकते है|  हरकिशोर कुछ टोपियाँ लेकर आता है| लाला मदनमोहन उन्हें यह कहकर नकार देते है कि, उनके जरूरती टोपियाँ पहले ही खरीद चुके है| हरकिशोर का कहना है कि, उन्हें वे टोपियाँ महंगी पड़ी है| चाहे तो वह उस टोपियों के असली मालिक से मिलवा सकते है| किन्तु लाला जी मिलने के लिए राजी नहीं है| हरकिशोर नाराज होकर अपने घर चला जाता है| लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगते है|

प्रकरण – ४

     इसमें लाला मदनमोहन और हरदयाल की भेट का वर्णन है| लाला मदनमोहन हरदयाल से मिलने के लिए आतुर है| उन्हें घड़ी-घड़ी काटना कठिन हो जाता है| चार बजते ही लाला घर से निकलते है, मिस्तरिखाने चले जाते है जहाँ तीन बगियें बनवाने का काम लाला जी ने दिया था| जिसके लिए सामान विलायत से मंगवाया था| फिर आगे हसनजान के तबेले में जाते है| वहां तीन घोड़े पांच हजार पांच सौ रूपये में लेंगे यह कहकर सीधे अपनी बाग़ ‘दिलपसंद’ की तरफ चले जाते है| लेखक ने वहां के वातावरण का वर्णन भी किया है| जिसमें बाग़ के फूलों, फलों, जगह का वर्णन आता है| साथ में वहां के बाजार का वर्णन भी इसमें आता है| बाग़ के उनके मकान के पर्दे बनवाने के लिए फिर वे हरकिशोर को याद करते हुए, आवश्यक पर्दे लेकर आने का हुक्म फरमाया| कुछ देर इन्तजार करते ही, हरदयाल आ जाते है| हरदयाल की आने की ख़ुशी के कारण ये दौड़ते हुए बग्गी के पास जाकर उन्हें ले आते है| कितने दिनों के बाद एक दूसरे को देख रहे है यह कहते भी है|

     लाला मदनमोहन अपने निर्मल मन से बाते करते है| हरदयाल कहते है, अपनी पिता की बात को न मानकर मैं यहाँ आज जिद्द करके आया हूँ| असल बात यह थी कि, लाला मदनमोहन के मन में मिलने की चाह बढाने के लिए इसबार उन्होंने देर की थी| क्योंकि उनके लिए लाला मदनमोहन की मित्रता सिर्फ एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी| लाला मदनमोहन को हर कोई कहता कि, यह मित्रता स्वार्थी है, पैसे के लिए है| फिर भी वे किसी की नहीं मानते| जब यह बात हरदयाल को बताते है तो, उन्हें बात थोड़ी खटक जाती है| अपनी बात जताने के लिए युहीं वे थोड़े नाराज होकर कहते है, आपको हमारी मित्रता चालाकी लगती है? या पैसोंवाली लगती है| जब लाला मदनमोहन अपने मित्रता का प्रमाण देने के लिए कलेजा चीरकर दिखाने की बात करते है तो वे फिर अपनी बातें पलट देते है| यहाँ यह स्पष्ट होता है कि, लाला मदनमोहन मित्रता को सच्चाई से निभा रहे है किन्तु हरदयाल जी उनके साथ धोका कर रहे है| दोनों मित्र प्रीति और मित्रता के बारे में बातें कर रहे है| हरकिशोर की टोपियों की बात निकलती है, तभी दरवाजा खुलता है और हरकिशोर भीतर आता है|

  हरकिशोर अपने माल की तारीफ करने लगता है| उसकी अनेकों बातों को सुनकर मदनमोहन कहता है, तुम कपड़ा दिखाने आये हो या बातों की दूकान लगाने आये हो? हरकिशोर को कल घर आने को कहा जाता है| ये दोनों अच्छी तरह मेल भेट करके अपने घर चले जाते है|

प्रकरण – ५

     मनुष्य की विषयासक्त वृत्ति की चर्चा की है| लाला मदनमोहन बाग़ से जब आते है| तब ब्रजकिशोर, मुंशी चुन्नीलाल, मास्टर शिन्भूद्याल, बाबू बैजनाथ, पंडित पुरुषोत्तमदास, अहमद हुसैन आदि सब दरबारी लोग मौजूद थे| साहब आते ही ग्वालियर के गवैयों का गाना होता है| इस निर्दोष दिल्लगी से थकान दूर हो जाता है और मन प्रसन्न हो जाता है| इन लोगों की चर्चा में राजनीति, अमीरों के एशोंआराम की कुछ इतिहास की बातें होती है| लाला जी को पहले नाच अच्छा नहीं लगता था| अब उन्हें धीरे-धीरे आदत सी हो गई है|   

प्रकरण – ६ 

     इस प्रकरण में भले बुरे की पहचान होती है| मनुष्य के मन में ईश्वर ने अनेक प्रकार की इच्छा, भक्ति, न्याय, प्रवृत्ति दी हुई है| काम, सन्तानस्नेह, लालसा, जिज्ञासा और आत्मसुख की अभिरुचि आदि निकृष्ट प्रवृत्ति भी शामिल है| इन सभी को छोडकर जो काम किया जाता है| वह ईश्वर के नियमानुसार होता है| काम, क्रोध, लोभ, मोह पर लेखक ने चर्चा की है| परोपकार से ह्रदय शुध्द होता है जैसे ही परिश्रम से शरीर शुध्द होता है| लेखक ने मनुष्य की सभी अच्छी, बुरी प्रवृत्ति पर लाला मदनमोहन और पंडित पुरुषोत्तमदास आदि के माध्यम से चर्चा की गई है|

प्रकरण – ७

     इस प्रकरण में मनुष्य की सावधानी अर्थात होशायारी पर बात कई गई है| जिसमें मनुष्य अपना जीवन व्यथित करते समय कभी सुखी, कभी दुखी, कभी सावधानी, कभी असावधानी से रहता है| धनवान, दरिद्री, पापी, पुण्यवान को अपने अपने हिसाब से दुःख-सुख झेलना पड़ता है| पर कोई अपनी होशियारी से पापी होकर भी सुख भोगता है और कोई धर्मात्मा होकर अपनी दुःख भोगता है| जीवन में सावधानी और असावधानी का सब खेल है| सावधानी हो तो सब काम अच्छे हो सकते है और असावधानी के कारण काम बिगड़ भी सकते है| लाला जी ये सावधानी के बातें सुनकर बहुत प्रसन्न होते है और लाला ब्रजकिशोर जी का उपकार भी मानते है|

प्रकरण – ८

       इस प्रकरण में मनुष्य उस प्रवृत्ति पर बात की गई है, जो हर बार में हाँ कहता है| यहाँ लाला मदनमोहन का स्वभाव भी वैसा ही है| लालाजी और उनका मुंशी एक दुसरे से बाते करते है| सब कोई अपना-अपना काम बनाने में एक जैसे होते है ऐसा पंडित जी का मानना है| लालाजी के व्यवहार की बातें होती है| बैठकर में पंडित जो गाने से सबको खुश करना चाहते है| पंडित जी को खुश करने के लिए सब लोग वाह..वा भी करते है| इसतरह की बातों में उनकी रात बहुत होती चली गई| फिर वे अपने-अपने घर चले जाते है|

प्रकरण – ९

    इस प्रकरण में लाला मदनमोहन के सभासद गणों की चर्चा की गई है| प्रथम मुंशी चुन्नीलाल का नाम आता है| जो ब्रजकिशोर के यहाँ दस रूपये महीने का नौकर का काम करते थे| उन्होंने उनको कुछ लिखना-पढना सिखाया था| जिससे उनको सभा में बोलने का चातुर्य आ गया| फिर मदनमोहन से जान पहचान हुई थी|

प्रकरण – १०

   इस प्रकरण में म्यूनिसिपेलीटी के मेंबर बनाने का और घर के कामों का प्रबंध(इंतजाम) कैसे किया जाता है इसपर चर्चा की गई है| लाला जी को मुंशी चुन्नीलाल मेंबर बनाने की मंजूरी आई है यह खबर देता है| उसपर बहुत चर्चा होती है और आजकल लोग किसतरह काम कम और चापलूसी करना ज्यादा जानते है यह स्पष्ट होता है| लाला मदनमोहन और लाला ब्रजकिशोर काम के प्रबंध और रीती के बारे में चर्चा करते है|

प्रकरण -११

    इस प्रकरण में लेखक ने सज्जनता के बारें में प्रसंग बताया है| मुंशी चुन्नीलाल म्युनिसिपेलीटी के मेम्बर के बारे में मदनमोहन से बात कर रहा है| लाला मदनमोहन कहते है, लोगों के साथ आदर-सत्कार और शिष्टाचार से पेश आना मतलब सज्जनता नहीं है क्या? लाल ब्रजकिशोर का कहना है कि, सच्ची सज्जनता मन के साथ होती है| सजन्नता के स्पष्टिकरण के लिए अलग-अलग उदारहण दिए जाते है| कभी अच्छे स्वभाव, कभी सज्जनता की नकल इसके बारें में चर्चा होती है| सजन्नता से ही मनुष्य सच्चा सुख मिल जाता है|

प्रकरण – १२

    इस प्रकरण में लेखक ने सुख-दुःख के बारें चर्चा की है| मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख अविभाज्य घटक होते है| कभी किसी बात का दुःख तो किसी बात का सुख मिलता है| यही मुंशी चुन्नीलाल बताते है| मास्टर शिंभुदयाल कहते है कि, जो बात पूरी नहीं हो जाती है तो सुख और वही पूरी न होना मतलब दुःख देता है| मनुष्य हमेशा अनुचित काम करके ही दुःख में फँस जाता है| मनुष्य में जो प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल होती है, मनुष्य उसी के अनुसार कार्य करना चाहता है| मनुस्मृति का उदाहरण भी लेखक देते है| अनुचित काम करके कोई सुखी नहीं हो सकता| सुख-दुःख पर अनेक प्रकार की बातचीत होती है|

प्रकरण – १३

    हर काम को बिगाड़ने में उसका मूल कारण विवाद होता है| लाला मदनमोहन अपने कमरे में बैठे थे| लाला हरकिशोर को से कल उसके ढिठाई से बात करने के बारे में पूछ रहे है| हरकिशोर को मदनमोहन से कुछ एकांत में कहना है| अपने माल की अच्छी किंमत के दिलवाने के बारें कहते है| लाला उसे धैर्य धरने को कहते है|    

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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