![]() |
https://youtu.be/5uMZzXhNyPY |
आवारा मसीहा
लेखक : विष्णु प्रभाकर
विधा : जीवनी (श्री
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय)
प्रकाशन : १९७४ में हुआ
है|
सारांश या
कथावस्तु :
लेखक ‘आवारा मसीहा’ तीन पर्वों इमं विभाजित
किया है
1. दिशाहारा
2. दिशा की खोज
3. दिशांत
दिशाहारा : बाल्यकाल
इस पर्व में विष्णु प्रभाकर ने शरतचंद्र के
बाल्यकाल का चित्रण बड़े मार्मिक शब्दों में किया है| उनेक पिता का नाम मोतीलाल
चट्टोपाध्याय था| वे जनपद ‘चौबीस परगना’ के कांचडा पाड़ा के निकट मामुदपुर के
निवासी थे| मोतीलाल जी बड़े निर्भीक और स्वच्छंद सभाव के व्यक्ति थे| उनका विवाह
भागलपुर के केदारनाथ गंगोपाध्याय की दूसरी पुत्री भुवनमोहिनी से हुआ था|
भुवनमोहिनी साधारण रूप-रंग की स्त्री थी| परन्तु वे एक सच्चे ह्रदय की बात को
स्वीकार करती थी| यही कारण था कि स्वतंत्र प्रकृति के साथ वे अपनी पटरी बैठाए रही|
उनके पुत्र का जन्म १५ सितंबर १८७६ ई. तदनुसार ३१ भाद्र १२८३ बंगाब्द अश्विन
कृष्णा व्दादशी, सम्वत १९३३ के दिन शुक्रवार की शाम को हुआ था| माता-पिता ने इनका
नाम ‘शरतचंद्र’ रखा| शरत का बचपन देवानंदपुर में व्यतीत हुआ| बचपन में उनको बहुत
से कष्ट उठाने पड़े| घर में खाने-पीने की चीजों की कमी रहती थी| पिता एक स्थान पर
ठहर कर जीवन यापन के लिए कोई व्यापार या धंधा नहीं करते थे| उनको इधर-उधर भ्रमण
करने में विशेष आनन्द आता था| कभी एक कार्य को उन्होंने मन लगा कर नहीं किया| यदि
कहीं किसी नौकरी में लग भी गए तो अधिक दिनों तक वे उसमें रहे ही नहीं| जरा-सा मन
उचाट खाया कि नौकरी छोडकर भाग खड़े हुए| इसलिए उनका अधिकाँश समय ससुराल में ही
व्यतीत हुआ| ऐसी स्थित में शरतचन्द्र को भी इधर से उधर भटकना पड़ता था|
शरतचन्द्र को पांच वर्ष की आयु में पाठशाला
में भर्ती कराया गया| चूँकि शरतचन्द्र बचपन से ही नटखट स्वभाव का था इसलिए वह
स्कूल में भी कोई न कोई शरारत करता रहता था| कभी वह पंडित जी की चिलम में तंबाकू
की जगह पत्थर भर देता तो कभी हुक्के में पानी की जगह कुछ और भर देता| उसकी इन
हरकतों से पंडित जी प्राय: उससे नाराज रहते थे| एक बार उसने ऐसी ही शरारत की|
पंडित जी ने शरारती का नाम पूछा तो एक लडके ने मार के डर से शरतचंद्र का नाम बता
दिया| शरतचंद्र को मालूम पड़ा कि उसे दंड मिलेगा तो वह कक्षा से भाग खड़ा हुआ| इस
बात को पंडित जी ने उसके पिता से कहा| नाना ने उसकी पिटाई की| इस प्रकार शरतचन्द्र
का बचपन तरह-तरह की शरारतें करने में बीतता था| इतने पर भी वे पढने-लिखने में अन्य
विद्यार्थियों की तुलना में तेज थे| इसलिए अध्यापकगण उसकी बहुत सी शैतानियों को
अनदेखा कर देते थे|
उसका एक परम मित्र था-पंडित का बेटा
काशीनाथ| दोनों बालक जब तब सड़क पर घूमते हुए दिखाई दे जाते थे| पास के जंगल या
झाड़ियों में तरह-तरह की शैतानियाँ करते हुए गाँव-कस्बे आदि के लोग उनको देखते रहते
थे| शरतचंद्र की कक्षा में एक लडकी पढती थी| शरतचंद्र उसके साथ भी शरारतें करता
हुआ घूमता था| प्राय: दोनों जरा-जरा सी बात पर लड़-झगड़ पड़ते थे| दोनों बालक नदी या
तालाब के किनारे मछली पकड़ते और पानी में गिट्टियां फेंकते हुए दिखाई देते थे| इन
सब कर्मों में बालिका भी शरतचंद्र का साथ देती थी| उस लड़की का नाम धीरू था| धीरू
एक प्रकार से शरतचंद्र के सुख-दुःख की साथिन हो गई थी| एक दिन की बात है, शरतचंद्र
ने एक लड़के को ईट मार दी| इसके बाद वह भाग कर एक स्थान पर छिप गया| इस बात का पता
धीरू को था| अत: वह खोजती हुई उसके पास जा पहुंची| उसने देखा कि शरतचंद्र हुक्का
गुडगुडा रहा है| धीरू ने धमकी दी कि वह इस बात को उसकी माता से कह देगी| यह सुनकर
शरतचंद्र क्रुध्द हो उठा| उसने धीरू की पीठ पर एक धौल जमा दी| धीरू रोती हुई घर
चली गई| शरतचंद्र की माँ को पता चला तो उसने शरतचंद्र की पिटाई कर दी| इतना सबकुछ
होने के बाद भी दोनों की मित्रता ज्यों की त्यों बनी रही|
धीरे-धीरे दिन और रात बीतते जा रहे थे|
लेकिन दोनों बालक-बालिका के घूमने-फिरने में कोई अंतर नहीं आया| वे दोनों सारा दिन
धूप में इधर-उधर घूमने और बातें करने में बिता दिया करते थे| शाम को जब वे
अपने-अपने घर लौटते तो उनकी पीठ पूजा होती थी| इसके बावजूद भी मछली मारने और नाव
में बैठ कर सैर करने का काम कभी बंद नहीं होता था| शरतचंद्र का कंठ मीठा था अत: वह
अपनी मित्र मंडली तथा चेलों के बीच गाना भी गा लिया करता था| एक बार शरतचंद्र ने
एक नाव पकड़ी और वह उसे खेता हुआ कृष्णपुर गाँव तक चला गया| यह गाँव गंगा नदी के
किनारे से लगभग तीन-चार मील दूर था| वह गाँव में पहुँच कर कीर्तन मंडली में
सम्मिलित हो गया| रात हो जाने के कारण उसका लौटना नहीं हो सका| दूसरे दिन उसके
पिता ढूढते-ढूढ़ते कृष्णपुर पहुंचे और उसे घर लिवाकर ले आए| इसी मध्य उसके पिता को
एक नौकरी मिल गई| शरतचंद्र अपने पिता के साथ देवानंदपुर आ गया| यहाँ शरतचंद्र में
मछली पकड़ने का कार्य तेजी से शुरू कर दिया|
नोट - इस जीवनी का संपूर्ण सारांश या कथा पढने के लिए नीचे दिए हुए लिंक पर जाकर पीडीएफ ले सकते है या मेरे YouTube Channal पर जाकर इस जीवनी कथा सुन सकते हैं|
१) नेट के नाटक के नोट्स https://imojo.in/8mg322 २) नेट की कविताओं का संकलन - https://www.instamojo.com/Varsha_More_Pawde/17cffbb9c58d63dd0c222625b0f7d766 ३) हिंदी नेट की कहानियों के नोट्स हिंदी नेट की कहानियाँ : एक अध्ययन https://imojo.in/2z6v6r5 ४) हिंदी नेट की कविताओं की व्याख्या https://imojo.in/4dgtw2u
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
thank you