'अँधेरे में कविता का परिचय :
प्रकाशन एवं संकलन : गजानन माधव मुक्तिबोध के ‘चाँद का मुह टेढ़ा है’(1964) काव्य संग्रह की अंतिम कविता ‘अंधेरे में’ से किया गया है| यह कविता आठ खंडों में विभक्त, इकहतर(७१) बंद (स्टेंजा) की एक लंबी कविता है| ये आठों खंड तथा बंद आकार–प्रकार के नहीं है| उनकी सबसे लंबी और सबसे विवादास्पद कविता यह है| अँधेरे में के रचना काल को लेकर कई तरह की सूचनाएं मिलती है| मुक्तिबोध रचनावली में नैमीचंद्र जैन ने इस कविता का रचनाकाल १९५७ से १९६२ तक संभावित बतलाया है| समशेर ने लिखा है कि इस कविता की रचना मुक्तिबोध ने राजनंद गाँव में की थी| राजनंद गाँव में १९५८ में पहुंचे थे और १९६१ में उन्होंने वहाँ अपनी तीन बहुत लंबी और लाजवाब कविता सुनाई थी| उसमे से एक कविता अँधेरे में थी| समशेर ने यह भी लिखा है कि, नागपुर में एप्रैसमील के मजदूरों पर जब गोली चली थी| तब रिपोटर के हैसियत से मुक्तिबोध घटना स्थल पर मौजूद थे| उन्होंने शीशे का फूटना, खून का बहना आँखों से देखा था| उनके अनुसार ‘अँधेरे में’ शीर्षक उनके सशक्त और मार्मिक कविता उनके नागपुर जीवन के बहुत सारे संदर्भ समेटे हुए है|
अँधेरे में शीर्षक उनकी सशक्त और मार्मिक कविता है| हरीशंकर परसाई ने
अँधेरे में कविता का समन्वय दुसरे संबंध में एक घटना के साथ जोड़ा है| वो घटना
मुक्तिबोध व्दारा माध्यमिक विद्यालयों के लिए तयार की गई पुस्तक ‘भारत इतिहास और
संस्कृति’ को मध्यप्रदेश सरकार व्दारा प्रतिबंधित किया जाना ये घटना १९ सितम्बर
१९६२ को घटी थी| पहिला स्मरण राष्ट्रवाणी में ‘तेजवती
पीड़ा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था| इसमें परसाई जी कहते है जबलपुर में
मुक्तिबोध साल में एक बार जरुर आते थे|
कभी-कभी चार पांच दिन रुकते थे और उन चार पांच दिनों में मुश्किल से एक घटना अपनी
समस्याओं के बारे में बात करते थे| बाकि जागृत स्थिति के १७-१८ घंटे विभिन्न
साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक समस्याओं पर बातें होती थी| मुक्तिबोध कुछ चीजों के
बारे में बहुत ही भीतर से उत्तेजीत हो जाते थे| बैचेनी और छटपटाहट उनके भीतर हमेशा
ही रहती थी| पर जिस चीज ने उन्हें गहेरा छू दिया है| उसके बारे में किसी घंटों सार्वजनिक
वक्ता की तरह जोर-जोर से बाते करते थे| उनके गले की नसे फुल जाती और वे हांपने
लगते| कुछ असंतुष्ठ प्रकाशक और एक सांप्रदायिक संघटन के लोग उनकी किताब की जप्ती
की मांग कर रहे थे और धर्मदाता को उभाकर मुक्तिबोध के खिलाफ जनमत को उत्तेजित कर
रहे थे| मुक्तिबोध तब बहुत उत्तेजीत थे| वे कहते, ‘पार्टनर ये मेरी या आपकी कलम
छीन ले गयी| आपके गले को दबाकर बोलने नहीं देगी| वे स्वतंत्र चिंता को समाप्त कर
देंगी| वे बढ़ेगी तो किसी दिन आपकी सारी प्रजातांत्रिक सत्ता को नष्ट कर देंगी और
फास्टटि तंत्र को स्थापित कर देंगी|’ मुक्तिबोध घंटो देश की राजनैतिक आर्थिक
परिस्थितियों का विश्लेषण करते और बताते थे कि एैसी स्थितियों में फास्टिट
परिस्थिति किस तरह उभर रही है| बोलते-बोलते उनकी साँस फुल उठती और बिस्तर पर लुढ़कर
थोड़ी देर में चुपचाप पड़े रहते| घोर मानसिक त्रास में उनके वे दिन गुजर रहे थे| और
उन्ही दिनों उनकी और सबसे लंबी सबसे ताकतवर कविता ‘अँधेरे में’ पूरी हुई| एकरात
लगभग दो घंटों में उन्होंने उस कविता का पाठ किया| उनके सुननेवाले मित्र उसके बाद
बड़ी देर तक सन्नाटे में बैठे रहे| एैसा प्रभाव उस कविता का था| मुक्तिबोध ने एक के
बाद एक बिडिया जलाना शुरू कर दिया| उस समय उन्हें देखकर लगता था| इस आदमी ने अपने
को निचोड़ दिया अपना सर्वस्व दे दिया अपनी सारी प्राण शक्ति इसमें भर दी और ये अब
रिक्त होकर बैठा है| इन घटनाओं ने मुक्तिबोध को सबसे अधिक आघात पोह्चाया जिसने
उन्हें तब देखा है| वही जान सकता है कि, भारतीय जीवन में जीन काले संकेतो को
उन्हें देखा था| उनसे वे कितने विचलित और उत्तेजित-त्रस्त थे|
हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते
है कि, साहित्य के
क्षेत्र मुक्तिबोध की पक्षघर थे| मुक्तीबोध को आत्मसंघर्ष का कवि माना जाता है| अँधेरे में मुक्तिबोध ने एमप्रेस मील के मजदूरों
की हड़ताल और गोली कोड का उपयोग किया हो| लेकिन इस कविता का रचनाकार वह है| जिसमे
उसकी पुस्तक प्रतिबंधित हुई और मुक्तिबोध आशंकित थे कि, देश में फॉसिजम और सत्ता
है| अपने विचार स्वतंत्रपर किए गए हमले और उसके आगे अंग्रेजी सरकार की घुटने टेकने
की घटना से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी कविता को अंतिम रूप प्रदान किया| मतलब यह
कि, ये कविता मूलरूप में पहिले ही रची जा चुकी थी| उसे अंतिम रूप मिला वो पूरी
हुई| उसके पुस्तक प्रतिबंधित दौर में फासिजम की कर्कशता और मानव शत्रुता से
मुक्तिबोध अच्छी तरह परिचित थे| व्दितीय विश्वयुद्ध उनकी आँखों के सामने घटित हुआ
था| सोविएत संघ पर फास्टिट जर्मनी के हमले को विषय बनाकर उन्होंने ‘ज़माने का चेहरा’ शीर्षक एक लंबी और महत्त्वपूर्ण कविता
लिखी थी| पहले युध्द के दौरान एक ‘नीली खाग’
शीर्षक कविता में उन्होंने जर्मनी की फास्टीट सेना और लाल सेना के युध्द का वर्णन
किया है| व्दितीय विश्वयुद्ध में सोवियत संघ ने फासिजम का पराजय किया| लेकिन इसका
मतलब यह नहीं हुआ| ये विचारधारा दुनिया से समाप्त हो गयी| यह कविता व्यक्ति से
जरुर शुरू होती है| लेकिन व्यक्ति के आत्मसंघर्ष का बहुत ही सदृढ़ सामाजिक संदर्भ
है| नगर में लगा हुआ मार्शल लॉ जुलुस से लेकर जनक्रांति तक का वर्णन इसीसे संबंधित
है| बीच में काव्य-नायक की आत्मभत्सना और आत्मसंघर्ष का वर्णन आता है| जनक्रांति
के वर्णन के बाद कविता फिर व्यक्ति केंद्रित हो जाता है| लेकिन ये प्रसंग ज्यादा
देर तक नहीं चलता और कविता के साथ जल्दी ही समाप्त हो जाता है|
५० पृष्ठों की जिसमें अधिक
विस्तार से मार्शल लॉ का वर्णन है| इस दृष्टी से अँधेरे में ही मुख वस्तु है| देश
में कायम फॉस्टीट हुकूमत और उससे लगा हुआ है| उस परिस्थिति में एक और प्रगतिशील
मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवी का आत्मसंघर्ष डॉ. रामविलास शर्मा ने अँधेरे में को “विभाजित
व्यक्तित्व की कविता” कहा है| डॉ. नामवर सिंह ने “अस्मिता की खोज की कविता” कहा
है| इस कविता में जो चीज गौण थी| उसे प्रधान बना दिया गया और चीज प्रधान थी| उसे
गौण बनाकर पेश किया| मुक्तिबोध ने आरंभ में इस कविता का ठीक शीर्षक दिया था - ‘आशंका का दीप अँधेरे में’ कवि को एक रात अँधेरे में
आकांक्षा के दीप दिखलाई पड़ते है| वे आशंका देश में फास्टीट हुकूमत देने की कायम
है| इसपर यह कविता मुख वस्तु की तरह बहुत सही ढंग से प्रस्तुत करता था| बाद में
कवी ने इस कविता का नाम अँधेरे में कर दिया|
किसी भी
देश में फास्टीट हुकूमत तब कायम होती है| जब पूंजीवाद का आर्थिक संकट इतना गहरा हो
जाता है कि उसे अपने अस्तित्व का खतरा नजर आने लगता है| उस हालत में पूंजीपति वर्ग
अपने पुराने प्रकार से देशपर शासन चलाने में असमर्थ पाकर जनतांत्रिक सत्त्ता को
ख़त्म कर देता है और जनता के नागरिक हक्क को समाप्त कर अपनी निरकुंश और बरबर सत्ता
कायम करता है| पूंजीवाद के संकट गहराई के साथ संघटित जनता का संघर्ष उत्कर्ष पर
पहुँचता है| जिससे पूंजीपति वर्ग और भयभीत हो उठता है| फास्टीट हुकूमत कायम करने के
बाद वह क्रांति को उठाने का भरपूर पर्वत करता है| लेकिन फास्टीट प्रति प्रतिक्रिया
भड़क उठती है और सैनिक और मार्शल लॉ तयार होता है|
नोट : कविता की व्याख्या पढने के लिए मेरे youtube पर varsha more pawde चैनल पर जाकर देख सकते हैं|
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